सन्त शिरोमणि रविदास
सन्त शिरोमणि रविदास
सम्वत् चौदह सौ तैंतीस,
पूर्णिमा, माघ मास।
दुखियों के कल्याण हित,
जन्मे सन्त रविदास।
स्थान वाराणसी,
पिता उनके रग्घु,
माता थी घुरविनिया,
दूर की जात-पात, ऊँच-नीच,
सामाजिक कुरीतियाँ।।
सतगुरु, जगतगुरु नामों से होता,
सन्त शिरोमणि का सत्कार।
समयानुपालन की उत्तम प्रवृत्ति,
उदार हृदय,
बहुत मधुर व्यवहार।
अनमोल वचन उपदेशों से,
किया हर-जन का उद्धार।
सद्भाव भर राजा और रानी भी पहुँचे,
शरण इनके द्वार।।
मधुर और भक्तिपूर्ण,
भजनों को रचकर,
किया मधुर गान।
ईश्वर है एक, नाम है अनेक।
कहते हैं वेद, कुरान, पुराण।
सदाचार, परहित भावना है,
ईश्वर का सच्चा गुणगान।
तजो अपना अभिमान,
करो समाज उत्थान,
दिये ऐसे ज्ञान।।
किया सिद्ध,
मानव ,जन्म, व्यवसाय से
न होता कभी महान।
विचारों की श्रेष्ठता,
समाज हित भावना,
दिलाती श्रेष्ठ सम्मान।
प्रेम पूर्वक रहो सभी,
भाईचारा अपनाकर,
करो जनकल्याण,
मन चंगा कठौती में गंगा,
आपके दर्शन पर,
बना वाक्य महान।
सन्तो में से सन्त रविदास जी महान,
आपको कोटि-कोटि प्रणाम।।
