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Reena Kakran

Inspirational

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Reena Kakran

Inspirational

सीमा

सीमा

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संसार के अनुकूलन को,

जीवन में सीमा बनी।

जीवन के ताने-बाने संग,

मर्यादा, हद, अति बुनी।।


सीमा को भी जाँचो- परखो,

तभी उसे पार करो।

अन्धविश्वासी, आडम्बरी हद को,

मत कोई स्वीकार करो।

बाँधेगी अपनी सीमा में,

कुएँ के मेंढक कुएँ में रहो।।


लगन की अति यदि कर जाओ,

सफलता के पहनाएगी हार।

संस्कार की मर्यादा जो भूले,

दिलाएगी हर जगह तिरस्कार।

सीमा ही उन्नति और अवनति का द्वार,

अपनी उचित सीमा जो कोई भूले।

पछताए जीवन भर न मिले जीवन सार।।


आदि से जिसने भी सीमा को लाँघा है,

हुए महाभारत, विनाश का कारण आँका है।

सीमाओं के बाणों को रखो अपने तरकश में,

एक बाण भी अनुचित छूटा, ले जाएगा अपयश में।

सीमा को यदि वश में करना, रखो इन्द्रियों को वश में।।


जो इन्द्रियों के लोभ में आ सीमा पार कर जाए,

अपना ही शत्रु बन दण्ड भोग वो कर जाए।

जीवन रूपी समुन्द्र में सीमा रूपी नदियाँ बहें,

मनुष्य रूपी नाविक को अपनी-अपनी परिधि में रखकर,

संसार का अनुकूलन करें।।



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