आश्रयस्थल होकर भी वीरान हूं ! यही मेरी नियति है ! आश्रयस्थल होकर भी वीरान हूं ! यही मेरी नियति है !
इतना क्यों अभिमान किया सुख को सूली टांग दिया। इतना क्यों अभिमान किया सुख को सूली टांग दिया।
बहु भाषा में लिखवा देता जब बोलूं तो झुठला देता बहु भाषा में लिखवा देता जब बोलूं तो झुठला देता
अपनी उचित सीमा जो कोई भूले। पछताए जीवन भर न मिले जीवन सार।। अपनी उचित सीमा जो कोई भूले। पछताए जीवन भर न मिले जीवन सार।।
कई बार मुश्किल है होता , जो सोच रखा वह करना कई बार मुश्किल है होता , जो सोच रखा वह करना