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आचार्य आशीष पाण्डेय

Fantasy

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आचार्य आशीष पाण्डेय

Fantasy

साहित्य है मेरा जीवन

साहित्य है मेरा जीवन

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सुन लो दुनिया वालों मुझको

हमदर्दी की नहीं जरूरत

जैसी भी है बस अच्छी है

जो भी पाया ज्ञान की ‌मूरत।।


दे साहित्य मुझे अपयश ही

वही मुझे स्वीकार सदा है

जीवन यह साहित्य को अर्पित

यही मेरा संसार सदा है।।


दादा भाई कहते कहते

कलम मेरी वृद्धा बैठी है

मोछे जैसी थी वैसी हैं

पलक न तन इक बार टिकी है।।


नहीं घूमना मुझको पीछे

उपहासों से यश पाऊंगा

खुद को मैं पय कर करके

पय साहित्य में घुल जाऊंगा।।


नहीं मांग है उस ईश्वर से

जो मुझ पर अन्याय किया है

जो भी हृदय बसाया मेरे

ज्ञान अधूरा वही दिया है।।


मैं नाराज़ रहूंगा उससे

जब तक इस तन सांस बसी है

दिया मुझे जो वापस ले ले

क्योंकि ये इक मात्र हंसी है।।


शापित जीवन मुझको देकर

वरदानों की झड़ी लगा दी

जब यश मेरा बढ़ना चाहा

तब जड़ता की कड़ी लगा दी।।


बहु भाषा में लिखवा देता

जब बोलूं तो झुठला देता

खेल खेलता मेरे संग में

हाथ थमाकर ठेलवा देता।।


नहीं चाहिए उसकी कृपा

मैं फकीर बनकर जी लूंगा

जो भी मुझको देगा लाकर

उसको ही वापस कर दूंगा।।


है साहित्य यही घर मेरा

इसमें मैं जीवन त्यागूंगा

यश नहीं दे सकता मुझको

तो इससे अपयश मांगूंगा।।



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