चातुर्य
चातुर्य
इतना क्यों अभिमान किया
सुख को सूली टांग दिया
नाम की तर्ज़ पर काम किया
नाम ने अपमान सरेेआम किया
अपयश मानव जीवन में
तृणमूल समान है
गंधर्व का पूजन कर
जीवन समझा महान है
न कोई पूजा,न कोई पूज्य
जीवन चातुर्य का परिणाम है
न कोई अपना,न कोई दूूूजा
सर्वस्व लोभ तमाम है
स्वयं परावलंंब अपनाकर
खोया अपना मान है
स्वावलंब का खंडन करके
किया अपना नुकसान है
मानव कब तक खोएगा
स्पष्टतः नष्ट कर रोएगा॥
