जाने कहाँ गए वो दिन
जाने कहाँ गए वो दिन
जाने कहाँ गए
वो दिन
जब खेल-खेल में
रोते थे
पर न कोई किया
शिकवा-गिला
जाने कहाँ गए
वो दिन
जब सब ही
अपने होते थे
न तेरा वो
न मेरा वो
सब एक ही
छत तले
सोते थे
जाने कहाँ गए
वो दिन
जब लगता
घाव मुझे और
दर्द उनको
होता था
सब हंसते थे
सब गाते थे
कोई और
भी प्यार ही
करता था
जाने कहाँ गए
वो दिन
जब चाव
हर समय
होता था और
बादल भी
न रोता था।
