दशहरा
दशहरा
पर्व इक ऊर्जा देता, मिले जिसमें विश्राम।
आपसी मेल भाव से, मन मस्तिष्क अभिराम।
रावण का संहार कर, चले अयोध्या राम।
एक संदेश जगत को, एक लेख पुराण।
बुराई कभी न जीते, होत बुरा है अंत।
अच्छाई जीते हैं जुग, याद रहे हर कंठ।
पुतला तो बेजान था, जिंदा करता राज।
पुतले के साथ अपना, रावण जलाएं आज।
रावण तो मर चुका है, जल कर हुआ खाक।
उसके वंशज आज भी, सबको देते पाठ।
