बचपन
बचपन
मांं की उंगली पकड़कर की गई पढ़ाई
कभी हसाती तो कभी रुलाती थी
बचपन तो अ ,आ में बिता करता था
ना जाने कितने वार्णो का खेल था
बचपन तो अपने रंगो में मेल थाl
मां की डाट भरी फटकार से
आंखो से मोती बुना करते थे
मां की उम्मीदें वर्णों के मेल में
मेरा बचपन लड़कपन के खेल में l
जब जब याद आता बचपन
मां की उंगली पकड़ लेता हूं
लौट आ एक बार बचपन
वहीं लड़कपन और भोलेपन।