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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

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श्रीमद्भागवत - ३८; वराह अवतार की कथा

श्रीमद्भागवत - ३८; वराह अवतार की कथा

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विदुर जी पूछें मैत्रेय जी से 

स्वयंभुवमनु का चरित्र सुनाएँ 

मैत्रेय जी कहें, मनु और शतरूपा 

ब्रह्मा जी से कहें, हमें कर्म बताएँ।


जिससे इस लोक में कीर्ति

परलोक में सदगति प्राप्त हो 

ब्रह्मा जी कहें, भार्या के साथ तुम 

अपने समान संतान उत्पन्न करो।


फिर धर्म पूर्वक पृथ्वी का 

पालन कर हरि की करो आराधना 

मनु कहें फिर, हे पिता जी 

भावी प्रजा ये रहेगी कहाँ।


निवास स्थान जीवों का पृथ्वी है 

इस देवी का उद्धार कीजिए 

डूबी हुई है प्रलय के जल में 

उस में से इसे निकाल दीजिए।


सोचें ब्रह्मा जब लोक रचना करूँ 

चली गयी पृथ्वी रसातल में 

कैसे अब में इसे निकालूँ 

हरि ही काम ये पूरा कर सकें।


ऐसा सोच विचार वो करें 

अकस्मात् नासाछिद्र से 

वराह रूप शिशु एक निकला 

आकार उसका बराबर अंगूठे के।


आकाश में खड़ा खड़ा वो बड़ा हुआ 

क्षण भर में हाथी के बराबर 

सब सोचें भगवान कि लीला 

और आश्चर्य करें उसे देखकर।


ब्रह्मा और मरीचि आदि सोच रहे 

तभी वो पर्वत आकार हो गया 

काले बाल, सफ़ेद दाढ़ें थीं 

गरजने लगा, पानी में घुस गया।


नेत्रों से उसके तेज निकाल रहा 

शोभा उसकी वर्णन ना कर सकें 

प्रभु शूकर रूप धरा था 

सूंघ सूंघ पृथ्वी का पता करें।


रसातल में पृथ्वी को देखा 

दाढ़ों पर लेकर ऊपर लाए 

मार्ग में वराह के आते समय 

विघन डालने हिरण्यक्ष आए।


तब उनको था क्रोध आ गया 

हिरण्यक्ष को मारा वहाँ पर 

जैसे सिंह हाथी को मारे 

पृथ्वी धारण की तब दाढ़ों पर।


पृथ्वी जल से बाहर ले आए 

ब्रह्मा तब ये समझ गए थे 

ये भगवान का ही रूप हैं 

प्रणाम करें उन्हें और स्तुति करें।


कहने लगे, हे देव, प्रभु हरि 

आप अपनी पत्नी पृथ्वी को 

इस जल पर स्थापित कीजिए 

प्रणाम करें हम आप दोनों को।


वराह भगवान ने खुरों से अपने 

स्तंभित कर दिया था उस जल को 

पृथ्वी को उस पर स्थापित किया 

फिर चले गए, हो अंतर्धयान वो।



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