लोग कितने गिर गए
लोग कितने गिर गए
ना आए कभी ऐसा वक़्त कि ईमान गिर पड़े।
लोगों का हाल क्या हो जो सिपहसलार गिर पड़े।
अपने तो सभी मिलेंगे यहाँ परन्तु धर्म युद्ध में,
ऐसा न हो कि हाथ से उनके हथियार गिर पड़े।
धोखे क़दम क़दम पे हैं चलना संभल के तू,
ठोकर लगी तो कितने ही दमदार गिर पड़े।
हर शख़्स से संभलता नहीं ऐश का नशा
कितने इसी ख़ुमार में सरकार गिर पड़े।
इस आधुनिक जहान में चालाक हैं सभी,
चालाकियों की चाल में व्यवहार गिर पड़े।
कैसा महल बनाया नये दौर में जनाब,
चौखट लगी हुई है मगर द्वार गिर पड़े।
नायाब ये मता तो विरासत में पाई है,
जीवन का श्रेष्ठ देख न आधार गिर पड़े।
इक बार हो तो मान लें की भूल हो गई
लालच में आप तो यहाँ हर बार गिर पड़े।
अपने हुनर से हमने ग़ज़ल कह तो ली मगर
मफहूम था न साफ तो अशआर गिर पड़े।
छल छद्म और झूठ की बुनियाद पर खड़े,
अररा के औ' धड़ाम से बाजार गिर पड़े।
नीयत नहीं है साफ तो होंगे न क़ामयाब,
मंज़िल कभी न पा सके गद्दार गिर पड़े।
जी जान से लड़े हैं वतन के ही वास्ते,
देकर के जीत शान से असवार गिर पड़े।
बच के चलो यहाँ पे ज़माने से मेरे यारा,
जाने कहाँ से कौन-सा आज़ार गिर पड़े।