मांँ कालरात्रि- सप्तम नवरात्रि
मांँ कालरात्रि- सप्तम नवरात्रि
शुम्भ निशुंभ और रक्तबीज ने मचा रखा था धरा पर हाहाकार।
परेशान होकर सभी देवताओं ने भगवान शिव से लगाई गुहार।।
भोलेनाथ के कहने पर माँ पार्वती ने दुर्गा स्वरूप किया धारण।
शुम्भ निशुंभ रक्तबीज का वध कर समस्या का किया निवारण।।
वध किया मांँ ने रक्तबीज का तो अनेक रक्तबीज हो गए उत्पन्न।
क्रोधित हुई माता ये सब देखकर रूप बनाया काली का प्रचंड।।
क्रोध से श्यामल हुआ वर्ण माँ का यही देवी कहलाई कालरात्रि।
चतुर्भुजी खड़क धारिणी मांँ काल से भी भक्तों की रक्षा करती।।
दयालु है कृपालु है मांँ कालरात्रि, देवी दुर्गा का है सप्तम रूप।
सर्वत्र विजय दिलाने वाली माता, मन के विकार करती है दूर।।
ब्रह्मांड आकार त्रिनेत्र, रूप भयानक, अंधकार समान है वर्ण।
भूत प्रेत दानव राक्षस सब दूर भागते मात्र कर इनका स्मरण।।
मांँ दुर्गा की सातवीं शक्ति बिखरे बाल गले में चमकती माला।
गर्दभ की सवारी करती मांँ सांँसों से निकलती प्रचंड ज्वाला।।
मांँ कालरात्रि उपासना से, खुल जाते समस्त सिद्धियों के द्वार।
अंधकारमय शक्तियों का विनाश कर,करती भक्तों का उद्धार।।
दूर होती ग्रह बाधाएं, मिलता है पुण्य, माता के साक्षात्कार से।
वीरता साहस का प्रतीक मांँ कालरात्रि दुष्टों का करती संहार।।
सुख समृद्धि का आशिश देती माँ, नकारात्मकता दूर करती है।
सदैव शुभ फल देने वाली मांँ कालरात्रि शुभंकारी कहलाती है।।