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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

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रामायण ४५ , रावण अंगद संवाद

रामायण ४५ , रावण अंगद संवाद

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सुबेल पर्वत पर राम सुबह उठे

कहें, क्या करना चाहिए हमको

जाम्ब्बान कहें सलाह मेरी ये

दूत बना भेजें अंगद को।


राम कहें अंगद तुम जाओ

तुम श्रेष्ठ बल से,चरित्र से 

लंका में प्रवेश किया उसने

भेंट हुई रावण के पुत्र से।


बातों में उनका झगड़ा बढ़ गया

उसने अंगद को लात थी मारी

अंगद पटक के मार दिया उसे

डर के भागी जो भीड़ थी सारी।


सब कहें वानर लौट के आया

लंका जिसने थी जलाई

बिना पूछे ही उसे बताएं

रावण सभा इधर को भाई।


रावण को समाचार मिला तो

कहे, देखें ये कहाँ का जीव है

रावण, अंगद को लगे जैसे

काला पहाड़ वो एक सजीव है।


मतवाले हाथियों की सभा में

सिंह जैसे निर्भीक हो जाये

ऐसे अंगद गया वहां पर

रावण पूछे, तुम क्यों हो आये।


बोले अंगद, हे दशानन सुनो

राम दूत, संदेशा हूँ लाया

पिता मेरे थे तुम्हारे मित्र

तुम्हारी भलाई के लिए आया।

 

तुम तो हो एक उत्तम कुल के

पुल्सत्य मुनि के तुम हो पौत्र

लोकपालों को जीता तुमने

शिव की कृपा तुम्हारे ऊपर।


राजमद या कोई मोहवश में

सीता को हर लाया है तू

क्षमा करें अपराध राम जी

मेरे वचन माने अगर तू।


जानकी जी को आगे करके

क्षमा राम से मांग लेना तब

रावण कहे, तू जाने न मुझे

बाप का नाम बता मुझे अब।


अंगद अपना नाम बताएं

कहें पुत्र हूँ बालि का मैं

सकुचा गया बालि नाम को सुनकर

रावण कहे, हाँ मुझे याद है।


अंगद को कहे, हे बालि पुत्र

तुमने कुल का नाश किया है

पूछे कैसा है मेरा मित्र

कहना मैंने उसे याद किया है।


अंगद कहें बस कुछ दिन बाद ही

तुम भी बालि पास ही जाओ

खुद ही कुशल पूछना उससे

जाकर मित्र को गले लगाओ।


मैं कुल नाशक, तुम कुल रक्षक

अंधे बहरे भी ना बात करें ऐसी 

बीस नेत्र और कान तुम्हारे

बात करो अज्ञानी जैसी।


रावण कहे दंड मैं देता

रोके धर्म और नीति मेरी

अंगद कहें, तूने चुराई पर स्त्री

सुनी कहानियां धर्म की तेरी।


रावण बोले तू बक बक मत कर

तूने बल न देखा मेरा

भुजाओं से कैलाश उठाया

है कोई योद्धा ऐसा तेरा।


राम स्त्री वियोग में बलहीन

देख दुखी हैं लक्ष्मण उसको

विभीषण को डरपोक मैं जानूँ

बलि योद्धा गिनूँ मैं किसको।


बस एक वानर जरूर बलवान है

जिसने लंका थी जलाई

अंगद बोले, हे रावण सुन

उनसे तो थी बस खबर मंगाई।


पर सही कहा, प्रीती, वैर करो

जो हो बराबर का तुम्हारे

अच्छा नहीं लगता किसी को

सिंह अगर मेंढक को मारे।


वचन के बाण से ह्रदय जल गया

रावण हँसकर बोला, हे बन्दर

तुम सब होते स्वामी भक्त हो

मैं ध्यान न दूँ तेरी बातों पर।


अंगद बोले, तुम कौन से रावण

एक रावण जो पाताल गया था

जीतने वो बलि को गया पर

बच्चों ने उसे बाँध लिया था।


बलि को उसपर दया आ गयी

छुड़ा दिया घुड़साल से उसको

दूसरा रावण, सहस्रबाहु ने पकड़ा

ले गया था वो घर पर जिसको।


एक और रावण भी था जो

कांख में रहा बालि की

तुम इनमें से कौन से रावण

कथा कही मैंने तीनों की।


रावण बोला, मैं वो रावण हूँ

शीश चढ़ाये जिसने शिव पर

महिमा मेरी शिव ही जानें

उठाया कैलाश अपने हाथों पर।


अंगद कहें, सुन राम की महिमा

परशुराम का गर्व भगाया 

वैर करे तो मरण हो तेरा

मुक्ति मिले अगर शरण में आया।


रावण कहे, अगर स्वामी तेरा

योद्धा बड़ा तो क्यों भेजे तुम्हे

लाज न आती दूत भेजते

क्या मुझसे डर लग रहा उन्हें।


अंगद बोले, मैं चाहूँ तो

अभी ही ले लूं जान मैं तेरी

पर मरे हुए को क्या मारना

बहादुरी इसमें नहीं कुछ मेरी।


होंठ काटकर क्रोध में रावण

बोला, जिसके बल पर तू बोले

पिता ने उसे वनवास दिया

स्त्री विरह में दर दर डोले।


निंदा सुनी प्रभु की अंगद ने

क्रोध आया था उनको भारी

भुजदंडों को पृथ्वी पर मारा

धरती हिलने लगी थी सारी।


सभागन जो बैठे थे सब

भय से चले गए भागकर

गिरते गिरते रह गया रावण

मुकुट गिर गए सब पृथ्वी पर।


कुछ तो उठाकर सिरों पर रखे

कुछ अंगद ने उठा लिए

मुकुटों को फिर जोर से फेंका

पास राम के वो चले गए।


वानर देखें जैसे टूटे तारे

दिन में उल्कापात हो जैसे

राम कहें, तुम डरो नहीं

ये रावण मुकुट, जो अंगद फेंके।


उछले हवा में पकड़ लिए

वो सारे मुकुट हनुमान

राम के पास था रख दिया उनको

प्रकाश उनका था सूर्य समान।


रावण क्रोधित हुआ, कहने लगा

बन्दर को पकड़ो और मारो

बाकी भी जो वानर और रीछ हैं

पकड़ो और उन्हें तुम खा लो।


पकड़ लाओ उन दो भाईयों को

उनको लाओ तुम मेरे पास

अंगद कहें रावण तू अँधा है

माना बीस आँख हैं पास।


क्रोध में प्रण कर पैर रोप दिया

कहा मूर्ख, तू हटा के दिखा

लौट जायेंगे राम यहाँ से

अगर तूने इसे हिला दिया।


रावण बोले अपने वीरों से

पकड़ो चरण, पछाड़ दो इसे

मेघनाद और योद्धा सारे

थोड़ा सा भी हिला न सके उसे।


रावण का मद चूर हो गया

क्रोध में स्वयं उठा था फिर वो

पकड़ने लगा पैर अंगद के

बोले वचन तब अंगद उसको।


बच न सको मेरे चरण पकड़ कर 

राम चरण पकड़ो तुम जाकर

रावण सकुचाकर लौट गया

तेजहीन हुआ ये सुनकर।


अंगद ने नीति समझाई

पर रावण फिर भी नही माना

अंगद चल दिए राम के पास

रावण का महलों में हुआ आना।


 











 









 





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