रामायाण ५१ ;अहिरावण की कथा
रामायाण ५१ ;अहिरावण की कथा
रावण पुत्र का क्रियाकर्म किया
सोच हुआ उसको भारी
मंत्री आकर समझाएं और कहें
आगे की अब करें तैयारी।
विचार बहु भांति करके फिर
अहिरावण को याद किया
पहुंचा था वो शिव मंदिर में
आकर्षण मन्त्र का जाप किया।
अहिरावण का चित डोल गया
सोचे रावण क्यों अकुलाया
इष्टदेवी का ध्यान किया और
रावण के पास चला आया।
सारा वृतांत सुनाया रावण ने
कहा यत्न करो ऐसा कोई
विनाश हो जाये शत्रु का
हार जाएं दोनों भाई।
अहिरावण बोला , सुनो रावण
तुम्हारे कहने से मैं जाऊं
माना नीति से नहीं चले तुम
फिर भी दोनों को हर लाऊं।
पातल में ले जाकर उनको
बलि दूंगा मैं देवी को
रात में प्रकाश हो सूर्य जैसा
तो समझना हर लाया उनको।
असल में वो पुत्र था रावण का
हुआ जन्म सापों के साथ
सुनकर रावण बहुत डरा था
सोचे ये तो है कोई शाप।
सोचे रखने योग्य नहीं ये
अपने एक दूत को बुलवाया
दूत ले गया अहिरावण को
धरती में दबा आया।
मरा नहीं वो बालक फिर भी
मिट्टी खोदके वो खाये
निकला बाहर महीने बाद वो
समुन्द्र के पास जाये।
सिंहिका ने वहां देखा उसको
घर ले जा पाला उसको
शुक्राचार्य एक दिन आये
कहें, रावण पुत्र है ये तो।
नाम रखा अहिरावण उसका
सब सुन समुन्द्र में कूद पड़ा
पानी के नीचे चला गया
वित्तललोक में वो था खड़ा।
सुँदर नागपुरी वहां पर
राजा दर्वीकर राज करें
एक जगह एक नदी दिखी जहाँ
कामदा देवी वास करें।
हजारों वर्ष वहां तपस्या की
देवी कहें वर मैं दूँ तुझको
कहे, देवता आधीन हों मेरे
जिससे लड़ूँ जीतूं उसको।
पिता अपमान मेरा किया है
वो भी एक समय आये
मेरी सहायता मांगें वो
याचना कर मुझसे कहें।
देवी ने वरदान दे दिया
कहा, जब त्रेता कुछ रह जाये
बीसों हाथ जोड़ के रावण
तुम्हारे पास चला आये।
संसार में कोई मार सके न
पर बस में नहीं मेरे एक वानर
स्वामी को उसके कुछ न कहना
बस उसका ही तुमको है डर।
रहने लगा अहिरावण वहीँ पर
पाताल लोक जाने लगा
वेश बदल पकडे जीवों को
और उनको खाने लगा।
एक दिन राजा दर्विकर
पकड़ने उसको था आया
कठिन युद्ध दोनों में हुआ
अहिरावण ने उसे हराया।
पहुंचे थे वो शेषजी के दर
दर्विकार को वो ये कहें
कन्या अपनी दो अहिरावण को
फिर दोनों मिलकर रहें।
कुन्दनी नाम की कन्या उनकी
अहिरावण से किया व्याह
उसने अपना नगर बसाया
दैत्यों संग रहने लगा।
रावण के पास से जब गया वो
अंधकार उत्पन्न किया
वानर सेना भयभीत हो गयी
हनुमान ढांढस दिया।
पूंछ से एक घेरा बनाया
ऊँचा जैसे एक पर्वत था
द्वार उसका बस एक ही था
वहीँ पर जहाँ उनका मुख था।
अहिरावण वहां पहुंचा, कपट से
विभीषण का था वेश धरा
हनुमान से पूछ के वो फिर
रामचंद्र के पास चला।
भेद न जाना हनुमान ने
भाईयों के पास चला आया
मन से प्रणाम किया राम को
अदृश्य हुआ करके माया।
उठा लिया दोनों भाईयों को
आकाश में बहुत प्रकाश हुआ
रावण को भी पता चल गया
अहिरावण पर विश्वास हुआ।
सुबह हुई जब जागे वानर
देखें राम नहीं हैं वहां
सुग्रीव हुए थे बहुत व्याकुल
तब हनुमान ने ये कहा।
रात में पुरुष एक आया था
लगे वो विभीषण जैसा
शायद मैं उसे पहचान न पाया
पहले न हुआ कभी ऐसा।
विभीषण बोले वो अहिरावण था
वो ही धर सके वेश मेरा
पाताल लोक में रहता है वो
उसने ही दोनों को हरा।
वो बलशाली, माया जाने
भेजा उसको रावण ने ही
सुग्रीव कहें, हे हनुमान सुनो
अब राम को लाओगे तुम ही।
तुरंत उड़े फिर हनुमान जी
मार्ग में बैठे वृक्ष तले
वहां एक गिद्ध और गिद्धनी
आपस में थें बातें करें।
गिद्धनी गर्भवती थी, बोली
मनुष्य का मास तुम ले आओ
उसको खाकर ही चैन मिले
जल्दी से अब तुम जाओ।
गिद्ध कहे कि अहिरावण है
राम को ले आया यहाँ
बलि उनकी देवी को देगा
तब मास मिले भरपूर वहां।
सुन हनुमान पातल को गए
देखा वहां एक नगर बड़ा
द्वारपाल मकरध्वज वहां का
वानर एक बलशाली खड़ा।
घुड़के वो, हनुमान को कहे
मेरा मत तू निरादर कर
मैं स्वामी का भक्त हूँ और
हनुमान का मैं हूँ पुत्र।
आश्चर्यचकित हुए हनुमान कहें
स्वपन में भी पुत्र न मेरा
लाज न आई ये कहते हुए
मैं हनुमान पिता तेरा।
मकरध्वज कहे, जब लंका जलाई
समुन्द्र के थे पास गए
पसीने की बूँदें समुन्द्र में गिरीं
पी लिया एक मछली ने।
उससे मेरा जन्म हुआ
इसीलिए आपका पुत्र हूँ
द्वार की रक्षा करता हूँ मैं
अहिरावण की सेवा करूं।
हनुमान पूछें पुत्र से
अहिरावण कहाँ होगा
बोला, वो लाया दो मनुष्यों को
दोनों की बलि देगा।
पर मैं न जाने दूँ आपको
खड़ा स्वामी की आज्ञा मान
दोनों में भयंकर युद्ध हुआ
दोनों का बल था एक समान।
उसी की पूंछ से बाँध दिया उसे
देवि के मंडप में आये
छोटा रूप धरा हनुमान ने
फूलों के बीच में घुस जाएं।
जब अहिरावण फूल चढ़ाये
भयंकर रूप धरा था तब
धरती में समा गयीं थीं देवी
हनुमान चरण छुआ था जब।
छवि देख, डरा अहिरावण
फिर सोचे, हुई देवी प्रकट
प्रणाम करे , प्रसाद चढ़ाये
कपि मुँह खोलें, खाएं झटपट।
जब सारी सामग्री ख़तम हुई
सोचे पूजा अब सिद्ध हुई
राम लक्ष्मण को ले आया
बलि की सारी तैयारी की।
राक्षस तलवार ले खड़े वहां
ये कहें वो दोनों भाईयों को
अपने हितेषी को सुमिरो तुम
अपने रक्षक को याद करो।
देवी की जगह हनुमान वहां
रामचंद्र को पता चला जब
कहें, काल के वश में तुम हो
देवी तुम्हारी भक्षक बने अब।
मारने चले जब राक्षस राम को
गरजे बड़ी जोर से हनुमान
अपने असली रूप में आकर
लेने लगे राक्षसों की जान।
अहिरावण कहे हनुमान को
ढीठ बहुत तुम, लगे न डर
हनुमान ने मारा उसको
डाल दिया अग्नि में सर।
उठाया राम लक्ष्मण को पीठ पर
पुत्र को बंधन मुक्त किया
चले गए पाताल लोक से
पुत्र को पाताल का राज्य दिया।
आ गए वापिस फिर लंका में
सबने सुख बहुत पाया
राम कहें परम हितकारी तू
मेरे मन को है तू भाया।
दुखी बहुत रावण ये सुनकर
नहीं रहा अब अहिरावण
मंदोदरी उसको समझाए
पर वो नहीं रहा था सुन।