STORYMIRROR

Dharti Siddhpura

Others

3  

Dharti Siddhpura

Others

नया साल - नयी उम्मीद

नया साल - नयी उम्मीद

1 min
332

आज सवेरे दरवाज़े पे किसी ने दस्तक दी

जाके मैने पूछा कौन है?

एक मनोहर चेहरे ने कहा ' मै नया साल हूं'

अचंभित खड़े सोच रही हूं मैं

ये कैसा अनूठा क्षण है

झटपट चटपट दिन बीत रहे है

और रातें हैं जो कटती नहीं

साल दर साल गुजर रहे हैं

और ज़िन्दगी है जो ठहरती नहीं।


ख़यालो के दोहरे से बाहर निकल 

मैंने बाहर खड़े मेहमान की और देखा

पूछा क्यूं आए हो क्या लाए हो

मुस्कुराकर उस सहज चेहरे ने कहा

नई उम्मीद, नई खुशियां, समृद्घि - संतुष्टी लाया हूं।


दिमाग ने कहा मत कर भरोसा,

यह एक मीठा छल है

आखिर सिर्फ कैलेंडर की तिथियां ही तो बदल रही है

वही तू, वही तेरे लोग और परिस्थितियां भी तो वही है।


अरे अरे! निश्छल दिल ने कहा

ये उम्मीदें ही तो हैं जो जीवन जीने की प्रेरणा देती है

ये आस्था ही तो है जो हाथ थाम कर सही राह दिखाती है।


थोड़ा सा गौर करने के बाद

मैंने मन की सुनी

बाहर खड़े मेहमान का खुशी से स्वागत किया

और अपने लिए खुशियां चुनी।


Rate this content
Log in