यक्षप्रश्न....
यक्षप्रश्न....
पांडवजन कर रहे थे जब वन में विचरन
प्यास जब लगी तो सोचा, करे पानी का प्रबंध
जल लेने तालाब पे गया पहले सहदेव
तालाब का मलिक यक्ष पूछे उसे प्रश्न
सूनते भी अनसुना करते जब लिया उसने जल
ये देखकर यक्ष ने दिया उसे शाप
बाकी पांडवो का भी हुआ वही हाल
एक एक करके सब हो गये शाप से मूर्च्छित
धर्मराज ही निकले पांडवों में होशियार
शांती से उत्तर देकर किया यक्ष को संतुष्ट
यक्ष का सवाल था क्या है जीवन का उद्देश्य
मोक्ष है उसका उत्तर बोले युधिष्ठिर
सरल प्रश्न नहीं था जन्म का कारण
कर्मफल और अतृप्त वासना था उसका उत्तर
यक्ष कहाँ था रुकनेवाला पूछे क्यो संसार में दुख
केवल स्वार्थ और भय, तुरंत बोले धर्मराज
हे धर्मराज क्या है ईश्वर का स्वरूप
सुन ले यक्ष, है वो निराकार सभी रुपों मे व्यक्त
हवा से तेज कौन चलता और कौन है घास से तुच्छ
मन हवा से तेज और चिंता तुच्छ है बोले तुरंत
एक एक उत्तर से खुश हो गये यक्ष
पानी पीकर लिया जीत का वरदान....
