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Aniruddhsinh Zala

Abstract Tragedy Classics

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Aniruddhsinh Zala

Abstract Tragedy Classics

उनकी ख़ुशी के खातिर सहा दर्द

उनकी ख़ुशी के खातिर सहा दर्द

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नीले गगन के तले

सागरकी उछलती लहरो के संग

मिलते दिल के अहसासो से

और बातें करते

पानी की लहरें

और ये सर्द हवाएं


मैं और तुम

किसी पेड़ के नीचे बैठते

और गीत गुनगुनाते

ये रात

और ये वादिया

जैसे बुला रही है तुझे ..!!

उस गगन के तले

मस्त लहरों के किनारे

उस चांद को देखते

और मौन बाते करते


सागर की लहरें

और मस्त ठंडी हवाई

हम और सिर्फ तुम

मस्त नरियल के पेड़ निचे

प्यार का मधुर गीत गेट

ये रात

और ये वादिया

जैसे बुला रही है तुझे ..!!

 

बात घरी महुबत की थी मेरी

 चुपचाप दर्द सारा सह लिया ...!

हजारों लगे इल्जाम जमाने के,

चुपचाप हमने सह लिया !

महुबत थी बेपनाह फिर भी

जुडा वो डर के वजह से हुवे..!

हमने भी उनकी ख़ुशी के खातिर

दर्द जमाने भरका दिलमे दबा लिया।


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