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Aniruddhsinh Zala

Abstract Tragedy Classics

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Aniruddhsinh Zala

Abstract Tragedy Classics

प्यार मे कितने मजबूर हम

प्यार मे कितने मजबूर हम

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किसी को क्या बताये कि प्यार मे कितने मजबूर हे हम.

 एक तुम्हे ही चाहा और तुमसे ही दूर है हम..


हमारी हर धडकन चलती है तेरे नाम से

फिर भी देखो तेरी आँखो से कितने दूर है हम.


वादा भी किया था हमने साथ रहने का सदा

 किस्मत के खेल के आगे हारकर दूर रहनेको मजबुर है हम.


बसते है बहूत दुर पर लगती नही दुरी कोई

ऐकदूजे के दीलमे आज भी कितने मशहूर है हम.


'राज' हदय की हर गलिओं में आज भी है बसेरा तेरा

जमाने की नजरों में दूर पर एक दूजे के सदा पास हे हम.


किसी को क्या बताये कि प्यार मे कितने मजबूर हे हम.

एक तुम्हें ही चाहा और तुमसे ही दूर है हम..


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