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Aniruddhsinh Zala

Romance

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Aniruddhsinh Zala

Romance

ह्दय सागर मे तैरती मछली हो तुम

ह्दय सागर मे तैरती मछली हो तुम

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ह्दय सागर मे तैरती जैसे कोई मछली हो तुम

दिल के हर कोने मे भूत बनकर रहती हो तुम 


दिल में धड़कन और धड़कन में तुम,

 क्यों दिया धोखा अकेले रह गए हम


शिकायत तुम्हारी करें भी तो किस से,,

सभी को कहा था तुमसे बेहतर कोई नहीं ,


दिल तोड़कर चली फिर भी कहते है आज

जमाने मे तुमसे प्यारा तो कोई भी नहीं.


प्रीत तेरी अमूल सम्पति मेरी हिफाजत मे रहेगी

दिल के दर्द मे मरहम बनकर प्रीत तेरा साथ देती रहेगी 


प्यार सच्चा किया तो जन्मों तक निभाएंगे

तेरी खुशी के चाहत के सिवा कोई हसरत नहीं।



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