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shekhar kharadi

Romance Others

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shekhar kharadi

Romance Others

मनुहारी

मनुहारी

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तपती भूमि

उजड़े पेड़ 

बंजर झील,

व्यथा से सिसकते

हृदय से कंपकंपाते

अकाल से डगमगाते

त्रस्त सारे जीव...


न कुछ गीला गीला

न कुछ सूखा सूखा

कब आओगे सजन प्यारे

कब भीगोगे प्राण के संग 

असंख्य प्रेम अवसर लेकर,

क्षणिक व्याकुलता तृप्त करने

अब तो लौट आओ मनुहारी...

बावरे सी नैन छत से राह देखें।


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