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AKANKSHA SHRIVASTAVA

Abstract Classics Inspirational

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AKANKSHA SHRIVASTAVA

Abstract Classics Inspirational

सम्मान

सम्मान

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अपमान से अस्मिता को नहीं

बस दिल को ठेस पहुँचती है

सम्मान की डोर तो सदा

आपके हाथ में होती है

 

आपकी प्रत्रिकीया से आपकी छवि बनती है

और वैसे ही दो पल के प्रतिशोद से

आपकी सम्मान की अर्थी, आपके हाथों ही निकलती है

 

मन कमज़ोर है अगर तो आंसू ही तो निकलेंगे

शिकायतें ही तो रहेंगी

खुद के किरदार में जान होती है अगर , 

तो सम्मान परछाई की तरह साथ चलती है

 

दिल के ज़ख्मों को, बदला लेने में

जाया ना होने दो,सब कुछ ऊपर वाले पे छोड़ दो

सम्मान का मरहम लगा के, उस किस्से को दफ़नाके

ज़िन्दगी में निरंतर चलते जाना, आगे बढ़ते जाना ही सम्मान है।


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