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AKANKSHA SHRIVASTAVA

Others

4.3  

AKANKSHA SHRIVASTAVA

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भूख-पराए देश में

भूख-पराए देश में

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भूख बड़ी तेज़ लगी है 

कभी अनाज की, तो कभी

आत्मसमान की 

पराए देश में अपनों के

स्नेह की और प्यार की 


भूख बड़ी तेज़ लगी है

तेरे साथ बैठ के फिर से

थाली साँझा करने की 

पराए देश में तुझसे पूछने की

‘एक रोटी और खाओगे क्या’


भूख बड़ी तेज़ लगी है

नानी माँ की देसी रेसेपी बनाने की

पराए देश में अपनों के साथ बैठ के,

दाल चावल आचार खाने की 


भूख का कोई देश नहीं होता,

कोई धर्म, कोई जात नहीं होता 

भूख का साहिल बस पेट होता है,

खाना जितना भी अलग हो 

पेट भरने का संतोष तो एक ही होता है 


भूख जब लगती है तो बड़ी

तेज़ लगती है, देश

अपना हो तो चल भी जाता है 

मगर जब पराया देश होता है

तो भूख बड़ी तेज है लगती।



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