STORYMIRROR

AKANKSHA SHRIVASTAVA

Others

3  

AKANKSHA SHRIVASTAVA

Others

सफर

सफर

1 min
50

मैं एक मुसाफिर हूँ मुझे मुसाफिर ही रहने दो 

सफर में ही चलते रहने के लिए बनी हूँ,

सफर में ही रहने दो 


मैं कोई संगेमरमर की मूरत नहीं,

सफर में तो हथौड़े खाउंगी 

और जब मंज़िल मिले तो चम चमाती

खूबसूरत मूरत बन जाऊंगी


मैं जलती हुई मोमबत्ती हूँ

सफर में जल जल के रौशन हो जाऊंगी 

कुछ पल जीऊँगी कुछ पल मरूंगी,

मगर सफर मे ही रहने आई हूँ

मंज़िल पाते ही बुझ जाऊंगी,

किसी अंधेरे में खत्म हो जाऊंगी


मैं अपनी ज़िन्दगी का सूरज हूँ, एक मुसाफिर 

मुझे सफर मे ही रहने दो, निरंतर चलते ही रहने दो। 


Rate this content
Log in