दरख़्त
दरख़्त
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दरख़्तों पे दरार ही काफी है
टूट जाने के लिए,
कटना ही जरुरी नहीं है।
दरख्तों पे दरार जरुरी है
डाली को फूलों से
भर जाने के लिए।
दर्द का ज़ख़्म जरुरी है,
खुशियों का मरहम पाने के लिए
दरार तो जरुरी है,
नसीब में बहार को लेने के लिए।