कंत का विश्रांत मन
कंत का विश्रांत मन
( 1 ) प्रभु जीवन में रस-धार भरो रे!
प्रभु दीन-दुखी जन के मन के ,
दुख- शोक घने चहुँ ओर हरो रे!
हम रात-दिनों विनती करते ,
प्रभु प्यार-अपार सदैव करो रे ||
प्रभु जाॅंचत धैर्य सदा सब का,
तुम प्राणि सदा सब धीर धरो रे |
करुणा कर दें हम पे प्रभु जी,
जन-जीवन में रस-धार भरो रे ||
जब प्रीत रहे मन और ऑंगन में तो,
जीवन में कोई असम्भारंत न होगा।
जब प्रीत रहे मन- ऑंगन तो,
मन-मोर कभी उद्भ्रांत न होगा ।
पिय की छवि अंकित हो हिय में,
मन किंचित भीत-अशांत न होगा।
जब दूरि बने अति बाधक - सी,
सजनी अरु कंत विश्रांत न होगा।
बिन आस लिए रहता हृद जो ,
उस चाहत में मन क्लांत न होगा।
