इन अंधेरो में कहीं मर ही ना जाऊँ
इन अंधेरो में कहीं मर ही ना जाऊँ
छोड़ के चल दिए यूँ हाथ मेरा जैसे के मैं एकदम ठीक हूँ
पीछे मुड़ के एक बार तो पूछा होता बेटा क्या तुम ठीक हो
तनहा हूँ इन अंधेरो मे कब से कहीं अब मर ही ना जाऊँँ
लड़ते लड़ते थक चुकी हूँ , चुप रहते रहते धैर्य खो चुकी हूँ
ख्याल बस इतना है की मेरी झूठी मुस्कान से तुम्हारे घर सुकून रहेगा
जीना बस इसलिय मेरी सांसो से तुम्हारी सांसे चलेगी,सांस तो है मगर
अँधेरा इतना है की कहीं मर ही ना जाऊँ।
चिंता मत करना मै कभी वापिस नहीं आउंगी
इन अंधेरो मे ही जगह बनाउंगी
अंधेरो मे ही रह जाउंगी
हाँ बस घुटन का कोई इलाज नहीं है
क्या पता अंधेरो की घुटन मे कहीं मर ही ना जाऊँ।
