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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

जुगनू जीवन भर

जुगनू जीवन भर

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बहुत बदहवास जीवन मंजर है

सब पीठ पीछे मार रहे खंजर हैं

सूख गये आज सातों समंदर हैं

कैसा छाया झूठ,फ़रेब मंजर है


अच्छे मनु बन रहे अब बंदर है

दुष्ट जन बन रहे अब कलंदर है

हर ओर दिख रहे जहरीले सर्प,

आज मनुष्य बने सर्प धुरंधर है


बहुत बदहवास जीवन मंजर है

सब पीठ पीछे मार रहे खंजर है

मनुष्य बन रहे, पिशाची नर है

ऐसा हो गया आज घर-घर है


हर तरफ बदहाली का मंजर है

ईर्ष्या,द्वेष का हर तरफ कर है

नेकी आपसी भाईचारे के बिना,

समाज मे जीना हुआ दुष्कर है


बहुत बदहवास जीवन मंजर है

अंधेरे,आडंबर के चहुँओर नर है

कहीं न दिखती रोशनी क्षणभर है

ऐसे हुए रोशन चरागों के घर है


फिर भी कभी हिम्मत मत हारना,

हर समस्या को जमकर डांटना,

हट जायेगा ये बुराई का मंजर है

मिल जायेगा अच्छाई का वर है


कितनी बुरा क्यों न समंदर हो

पर जो शख्स बनता निर्झर है

वो ही प्यासा बुझाता मनभर है

मिटाता वो ही बुराई का घर है


बहुत बदहवास जीवन मंजर है

पर जो बनता कोहिनूर पत्थर है

वो मिटाता अंधेरे का हर प्रहर है

जो बनता जुगनू जीवन भर है!



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