आज़म
आज़म
सनम तुझको मैंने ख़ुशबू वफ़ा भरा भेजा
मुहब्बत का फ़ूल ये आपके लिए भेजा
वही गया बेवफ़ा का मुझे लिख ख़त देखो
जिसे ख़त मैंने अपना यार बावफ़ा भेजा
इसीलिए खा गया हूँ दग़ा वफ़ा में मैं
गुलाब जिसको मगर प्यार का सदा भेजा
वही उतर आया है आज गैर होने पे
मुहब्बत का ही जिसे मैंने सिलसिला भेजा
गुलाब जिसको मुहब्बत का भेजा है तूने
उसी ने नफ़रत का तेजाब है सुना भेजा
ज़वाब ए देखते भेजते है क्या आज़म
गुलाब ए इश्क़ ख़त रस भरा ज़रा भेजा।
आज़म नैय्यर
