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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

बंद दरवाजे

बंद दरवाजे

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बंद हो गये है,आज वो दरवाजे

जिनसे आती थी,कभी आवाजे


वक्त से मिली,अब ऐसी सौगातें

गरीबी में दूर हुए,सब रिश्तेनाते


समाप्त हो गई है,आज वो बातें

रह गई है,ईर्ष्या भरी मुलाकातें


बंद हो गये है,आज वो दरवाजे

जिनसे आती थी,कभी आवाजे


साथ होकर भी रह गई है,दूरियां,

कैसी हो गई है,आज मनु बरातें


दरवाजों में रहे अब बस,सन्नाटे

स्वार्थ ने मारे सबको ऐसे चांटे


मिल रहे सत्य को आज कांटे

झूठ-फ़रेब फूल फूले न समाते


बंद हो गये है,आज वो दरवाजे

जिनसे आती थी कभी आवाजे


जो खाते सदा हकीकत खाना,

उनको कभी बुरे स्वप्न न आते


पर जो चलते सदा नेकी रास्ते,

अमावस को बनाते पूनम राते


जो लेते है बस,ईमान के खर्राटे

वो चलाते है,बुराई पर कराटे


खोल देते है, सब बंद दरवाजे

जो सच्चाई के फूल है,खिलाते


वो मिटाते देते जहरीली बातें

जो सदा सत्य की लौ जलाते


जिनके पास हकीकत चाबी है,

वो खुल देते है,वो बंद दरवाजे


वो सर्वत्र स्नेह के फूल खिलाते

जो करते बंधुत्व,स्नेह बरसाते


वो ही बनते दुनिया मे शहजादे

जिनके होते पक्के-सच्चे इरादे


वो खोलते हर असंभव दरवाजे,

जो मेहनत के करते अटूट वादे


उनका जग में कुछ नही होगा,

जो आलस्य के रखते इरादे


उनके लिये बंद रहते है,दरवाजे

जो भाग्य भरोसे जीवन बिताते


खुले रहते है,उनके लिये दरवाजे

जो लहरों के विपरीत घर बनाते!




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