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AKANKSHA SHRIVASTAVA

Abstract

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AKANKSHA SHRIVASTAVA

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आँगन के गुलाबी फूलों को

आँगन के गुलाबी फूलों को

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तुम्हें बिन पूछे खिलने का तो हक़ है 

मगर मुरझाने की इज़ाज़त नहीं 


ये गुलाबी रंग हर एक पंखुड़ी का 

मेरे दिल के लहू से पाया है,

इन्हें जाया करने का हक़ नहीं 


टूट के यूँ मेरे आँगन में मेरे

सामने बिखर रहे हो 

तुम्हें देख के खुद को जोड़ा था,

मुझको यूँ तोडना क्या ये गलत नहीं ?


देखा जब झांक के ज़मीन पे तुम्हें पड़े हुए 

तुम मुरझाए नहीं अभी खिले खिले हो,

क्या अपने ज़िंदा होने पे यकीन नहीं ?


मेरे दर्द से इतना ना गमज़दा हो 

हम दोनों एक दूजे का सहारा हे,

अभी खिले रहो, दिल के लहू का कर्ज़

अभी तक हुआ अदा नहीं।


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