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Dr. Akansha Rupa chachra

Abstract

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Dr. Akansha Rupa chachra

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आपबीती

आपबीती

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बात उन दिनो की है। जब मैं दिल्ली से ओडिशा के शहर कटक मे आई थी। मेट्रो की दौडती -भागती जिदगी डिब्बा नुमा फ्लैट प्रदूषण का बढना तो आम बात हो चली थी। लेकिन ओडिशा की हरियाली, नारियल के पेडो की कतारे, महानदी का किनारा, काठजोडी नदी की सुदंरता। नारियल, खजूर, काजू के पेड, हर घर मे सुबह शाम भक्तिभाव से आती पूजा, हवन की सुगंध, तुलसी के पौधे की श्रृद्धा से पूजा। स्वच्छ भक्ति पूर्ण वातावरण ने मेरे मन को मोह लिया। एक रविवार हम लोग यहाँ के चिड़ियाघर ( नदंन कानन ) घूमने गए। मुझे लगा मानो प्रकृति की गोद मे पेड़ो के झुरमुट से चिड़िया का चहकना। जानवरो की देखभाल का विशेष रखरखाव तारीफ के काबिल था। जंगल सफारी का मजा बहुत यादगार था। हम धौलगिरी पहुँचे। पहाड पर बुद्ध की प्रतिमा बहुत ही सुदंर गौरवान्वित छवि शान्ति का अनुभव मेरे लिए महत्वपूर्ण दिन था।

ओडिशा का कटक जिसे सिल्वर सिटी कहा जाता है। चाँदी के जेवरो की बनावट अति आकर्षक थी। हर चीज जो मेरे मानसिक पटल मे स्मृतियो की पेनड्राइव मे कैद होती जा रही थी।एक विशेष छाप कायम कर रही थी। परम धाम पुरी जाने पर की रहस्यो के पर्दे मेरे मस्तिष्क को चौंका देने वाले थे। चारो और प्रकृति का मनोरम दृश्य समुद्र के पास होकर भी मंदिर मे समुद्र के शोर के शांत स्वरूप हैरान कर देने वाला था। मैं हैरान थी कि जगन्नाथ जी का प्रसाद मिट्टी की हाँडियो मे बनाया जाता है। चमत्कार को साक्षात् देखकर हैरानी की सीमा न रही। हाँडी के ऊपर हाँडियो को रख कर बनाया जाता है। परन्तु चूल्हे पर रखी हाँडी अन्तिम तथा सबसे ऊपर वाली हाँडी मे रखा भोजन पहले पकता है।

बहुत से रहस्य देखे।बोली साहिब गुरूद्वारा जी मैं जगन्नाथ और गुरूनानक जी के चरणो के निशान, वहाँ पर समुद्र के पानी का मीठा होना भी मेरे लिए बहुत,महत्वपूर्ण दृश्य था।

चिलिका झील जो समुद्र मे मिलती है।वह दृश्य देखकर लगा कि धरती पर स्वर्ग की अनुभूति होने लगी।सीप से मोती निकलते देखकर मेरी खुशी का ठिकाना न रहा।

झील की सैर करते हुए डाल्फिन को देखना। विचित्र सुंदर

पक्षियो को देखकर मेरा मन खुशी से सातवे आसमान को छूने लगा। ओडिशा की सुंदरता,लोगो का साधरण परिवेश गाँवो की ओर लगाव मुझे पंसद आया।

एक सच्ची घटना का वृतांत मेरे ह्दय मे गहरी छाप छोड गया आज भी याद करने से दृश्य मेरी आँखो के सामने आ जाता है। 

जंगलो का अनावश्यक कटाव ने पंछियो, मवेशियो, आदि को बेघर कर दिया।

मेरे रसोई घर की खिड़की पर लगे काँच पर लगातार चोच मार कर चिडियाँ अपनी बोली मे कुछ बोलती जब लगातार मैंने उसे ऐसा करते देखा। मेरी दादी माँ ने मुझे बताया कि यहाँ हमारे घर मे कुछ साल पहले यहाँ आम का बगीचा था। नारियल के पेड, नीबू का पेड बहुत सुंदर फूलो के पौधे थे। आम के पेड पर घोसलो मे चिडियो की चहचहाटे गूँजती थी। परन्तु घर के बँटवारे ने सब बदल डाला। मोहक बगीचे के स्थान पर रसोई घर बना दिया गया। हवादार घर फ्लैट के रूप मे बंद डिब्बे के रूप मे परिवर्तित हो गया।

 आक्रोश मे आकर जैसे पंछी बोल रहे है। हमारा बसेरा छिन गया बोलो हम कहाँ जाए.....

ऐसा लगता है। प्रकृति से जितना दूर होकर आधुनिकता की चकाचौंध से जुड़े। ना जाने महामारियो की गोद मे आ गिरे। प्रदूषण का प्रकोप कम था, की जैविक हथियारो ने हमे घेर लिया। आयुर्वेद का खजाना भूल हम बनावटी भागम-भाग की होड मे जब से शामिल हुए। तब से दुखो बीमारियो की चपेट मे आ गए। 

 प्रकृति की गोद मे मातृप्रेम को त्याग स्वार्थ सिद्धी के कारण मनुष्य अपने विनाश का कारण स्वयं ही बन गया।

प्रदूषण ने श्वास रोग को जन्म दिया। कोरोना ने विश्व संकट को जन्म दिया।

 हम सब एकजुट होकर प्रकृति प्रेमी बन जाए। पेड़ो को सुरक्षित रख। पौधे को अधिक से अधिक लगाये। फिर वातावरण मे कभी न आक्सीजन कम होने पाए।

प्लास्टिक को जलाने से, उसके उपयोग को कम करने मे सहयोगी बने।

 जानवरो के आवास, पंछियो के बसेरो को बचाने का एक उपाय जंगलो के अनावश्यक कटाव पर रोक लगा देनी चाहिए। 

नदी किनारे आँखे मूँदे संगीत को सुने।

कभी कभी कुछ समय गोशाला मे बिताये।गौ माता को चारा खिला कर शांति का अनुभव करके देखे।

आपको रूह मे सुकून की अनुभूति प्राप्त होगी। गाँव का परिवेश पेड़ो की छाँव, आम की भरमार पेड़ो के झुरमुट से कोयल की मीठी बोली,शहर की स्पीडो मीटर की रफ्तार से प्रकृति की गोद का अनुभव नदी का किनारा पेड़ो की छाँव मे बैठते ही मन का भटकाव छू मंतर हो जाता है।

 दोस्तो प्रकृति हमेशा हमे वो देती है।जो हम उसे देते है।

परंतु कृत्रिम उत्पादन, प्लास्टिक का प्रयोग, प्रदूषण ने प्रकृति के सौदर्य को जब ग्रहण लगाया। प्रकृति की विनाश लीला से सम्पूर्ण विश्व संकट की परिस्थित से जूझने लगा।

पेडो को अनगिनत काटना, स्वार्थ सिद्ध के लिए,  परिणाम

स्वरूप प्रकृति का असहनीय प्रकोप प्रत्यक्ष है।

 प्रकृति की गोद मे शांति है। 

 माँ के आचल सा सुख मिलता हरियाली से।

पिता समान रक्षा करते वृक्ष हमारी।

कल कल नदियो की ठंडक 

हमे शांति अनुभव कराती।

हम धरा की हरियाली श्रंगार करायेगे।

नदियो को प्रदूषित न करके।

सभी भारत वासी प्रण ले कर।

अपने जन्मदिन के अवसर पर पेड़ लगाये गे।

सृष्टि को सजा कर।

सुख ही सुख जीवन में पायेंगे।


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