बचपन वाली दीवाली
बचपन वाली दीवाली
🌟 बचपन वाली दीवाली
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डॉ. आकांक्षा रूपा चचरा
याद है वो बचपन वाली दिवाली,
मिट्टी के दीये, मुस्कान निराली।
काग़ज़ के रंगों से सजती चौखट
,
माँ के हाथों की खुशबू आली।
न कपड़ों की थी कोई दिखावे की बात,
बस दिल में उमंग, आँखों में साथ।
भाई बहन संग झिलमिल पटाखे,
हँसी में घुलता हर सौगात।
न मोबाइल था, न था सेल्फ़ी का शोर,
बस दिल से मिलते थे सब दौर-दौर।
मिठाई में घुलता प्रेम का स्वाद,
हर कोने में था अपनापन भरपूर।
अब रोशनी है, पर सन्नाटा गहरा,
वो बचपन का उत्सव कहाँ ठहरा?
काश लौट आए वो सादगी
भरे दिन,
जब दीपों से नहीं, दिलों से जगमग थी धरती सारा।
