कविता शीर्षक: "कैलाश की महिमा" धवल हिमालय की गोद
कविता शीर्षक: "कैलाश की महिमा" धवल हिमालय की गोद
कविता शीर्षक: "कैलाश की महिमा"
धवल हिमालय की गोद में, एक धाम निराला है,
शांत, अचल, नीरव सा, कैलाश उजाला है।
बर्फ की चादर ओढ़े वो, जैसे शिव का साज,
प्रकृति भी नतमस्तक हो, गाए उसका राज।
जहाँ न पहुँचे शब्द कभी, वहाँ ध्यान सधाता है,
मन, कर्म, वचन सब तजकर, आत्मा रम जाता है।
शिव का वास, सदा विराजे, नाद अनहद गूँजे,
गंगा भी चरणों से फूटे, अमृत रस वो पूँजे।
तपस्वियों की साधना, वहाँ पूर्ण फल पाती,
कैलाश की नयन-ज्योति, हर अंतर ज्योति जगाती।
सर्द हवाएँ बोल उठें – "बोलो हर हर महादेव",
हर दिशा में गूँजे मंत्र, "ॐ नमः शिवाय" के सेव।
जिसने देख लिया वो रूप, फिर मोह में ना फँसता,
कैलाश का वो दिव्य नर्तन, बस आत्मा में बसता।
कहते हैं देवता भी वहाँ, पग धरने को तरसें,
पर जो पा ले प्रभु कृपा, वो भव बंधन से हटे।
कैलाश ना केवल पर्वत है, वो तो शिव का धाम,
जहाँ आत्मा पाती है, सत्य, शांति और नाम।
अगर चाहो, मैं इसे पोस्टर या किताब के लिए डिज़ाइन में भी बदल सकती हूँ।
