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Rasmita Sahoo

Abstract Tragedy

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Rasmita Sahoo

Abstract Tragedy

"कठपुतली की जुबानी "

"कठपुतली की जुबानी "

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कभी तू जख्म को 

भरने के काम करती थी 

और कभी दर्द को बांटने में !


पर आज 

हम इतने आगे 

बढ़ चुके हैं की 

दर्द भी अब और दर्द नहीं लगते


अपने भी अब और अपने नहीं लगते 

सपने भी सब झूठे लगते हैं !

ये कैसी हैं तमाशा उनके,

तुझको भी तो वे छोड़े नहीं


कठपुतली तो वो खुद बने 

औऱ किसीको भी बख्से नहीं !


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