कठिन है
कठिन है
पिछले साल से मानवता शर्मसार हो रही है किसी को
अपना मान पाना मुश्किल हो रहा है I इस पर लिखी कविता
कठिन न होता तेरे दुर्गम गिरियों को लांघ जाना
कठिन न होता तेरे प्रबल नदियों को बाँध पाना
कठिन पर कठिन है अपने अपनों को पार पाना I
एक सदम विस्वास लिए मंजिल की ओर चल रहा
बढ़ते कदम फिसल रहा हर बार विफल रहा
कठिन न होता सागर के निर्मम आघातों को सह जाना
कठिन न होता दिन ढले अगम रातों को थह पाना
कठिन पर कठिन है अपने अपनों के बातों को सह पाना I
कु
छ न लेता सूरज इतनी रश्मि को साथ लाकर
जीवन प्रवाह पवन कुछ न लेता हमारे पास आकर
कठिन न होता जर्जर जीवन वन में दुखों को आत्मसात करना
कठिन न होता ऋतु के विरह मिलन को मात करना
कठिन पर कठिन है लालायित आंखों पर न्यौछावर सौगात करना
अमीर गरीब के बीच में खींची कितनी रेखा है
जाति धर्म के खाई में कितनों को तड़पते देखा है
कठिन न होता मानव को मानवता से गुहार करना
कठिन न होता महितल, में दानवता को संहार करना
कठिन पर कठिन है जीवन स्वार्थ छल का प्रतिकार करना I