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Vijay Kumar parashar "साखी"

Inspirational

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Inspirational

"अपनों का सताया सितारा"

"अपनों का सताया सितारा"

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अपनों का सताया हुआ,सितारा हूं

परायों से नही अपनों से,मैं हारा हूं

रातों का नही,भोर का अंधकारा हूं

शूलों से ज्यादा में फूलों का मारा हूं

जिसे मानता रहा,मैं अक्स अपना

उसने ही तोड़ा नाजुक दिल अपना

में शीशा पत्थरों से न हुआ बेचारा हूं

दगाबाजी फूलों से हुआ,टूटा तारा हूं

छद्म रिश्तों का सताया वो गुब्बारा हूं

फूटता रहा,विश्वास के कारण यारा हूं

वे चुभोते रहे,पिन जिन्हें माना,शुभदिन

में अपनों के दिये उपहारों से हारा हूं

जितने मिलेंगे,ज़माने से हमको गम

उतने ज्यादा,महकेंगे ओर खिलेंगे हम

में परेशानियों से जुड़ा,एक ऐसा नारा हूं

नींदों में भी मिलती,जैसे उनका दुलारा हूं

मिलती है,मुझको तो स्वप्नों में भी ऐसे

जैसे उनके लिए रहा,आखरी कुंआरा हूं

दुःख कितना हो,हिम्मत कभी न हारा हूं

मैं कठिनाइयों से लड़ने वाला ध्रुव तारा हूं

जो भी होगा,वो यहां पर देखा जायेगा 

यह मनुष्य जीवन दुबारा थोड़ आयेगा

इस दुनिया मे रोशनी तो वही देगा,

जो दीपक बनकर यहां पर जलेगा

बनूंगा,ज़माने को चुभता वो नजारा हूं

लोग देखे,कहे,में जीता जागता सितारा हूं।



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