जोड़ता जल
जोड़ता जल
दुनिया बनती है जब पानी बहता है,
सभी को जोड़ता है जल, महासागरों से कुएँ तक।
बो नहीं सकता इंसान यह अनमोल संसाधन।
हाँ, लेकिन, बुन सकता है इसकी शुद्धता-पवित्रता।
बहती नदियों से शांत झरनों तक,
जल,
हमारी आशाओं और सपनों का स्रोत,
हर बूँद इसकी कह जाती है कोई कहानी,
जीवन की जीवंत यात्रा, उत्पत्ति से अंत तक की।
इस तरल सोने के बिना हैं हमारे किस्से अनकहे,
इस बिखरे हुए आशीर्वाद के माधुर्य को पकड़, इसकी शक्ति को अपनाएं क्यों न!
सूखे से त्रस्त भूमि से बंजर तटों तक,
चुभती है पानी की कमी,
शांत प्रकृति करती याचना, होने को पोषित।
मूक आँसू प्रकृति के टपकते नल से भी बहते हैं।
बहते हैं ये आँसू ग्लोबल वॉर्मिंग की बारिश से भी।
बहें न ये अब अम्लीय वर्षा से - फैला दें बाहें हम।
जागरूकता के बीज रोपें, ज्ञान को आने दें,
भविष्य की राह करें नम- थोड़े पानी थोड़ी गर्मी से,
नदियों को स्वच्छ करें, करें मन को भी स्वच्छ।
परिवर्तन का कोरस गाते हुए, हर बूंद सहेज लें,
जल के आलिंगन में पा लें हम अपनी एकता ,
लिखें जल जीवन की एक कविता।
अपनी ही जीवन रेखा की रक्षा के लिए।
तुम, लिखोगे ना!
