सिक्के के दो पहलू
सिक्के के दो पहलू
दुनिया की हर सजीव निर्जीव चीज का अस्तित्व
सिक्के के दो पहलुओं की तरह होता है।
एक पहलू का कोई मतलब नहीं होता है
एकला का अर्थ भाव खोना होता है।
चाहे आशा हो या निराशा,
या फिर हो हार जीत का दौर,
सुख है तो दुःख भी आना ही है,
अंधेरे के बाद उजाला होना ही है।
यश मिलेगा तो अपयश भी बगलगीर बनेगा
उतार, चढ़ाव भी देखने से
भला कौन बचा रह सकेगा ।
सिक्के के दोनों पहलुओं का अंदाज निराला।
ठीक वैसे ही जैसे आदि हो या अंत
या फिर उदय-अस्त, जन्म-मरण
चाहे हो उत्थान या फिर पतन
सिक्के के दो पहलू सरीखे ही तो हैं ,
विद्वान हो या अनपढ़
कोई कुछ भी कहे, बड़ा गुमान करे
वास्तव में यही सत्य है।
हिंसा और अहिंसा की तरह
जैसे सत्य झूठ भी सिक्के दो पहलू ही तो हैं,
ये हमारी आपकी सोच भर नहीं
मानसिकता की कोई रीति भी तो नहीं
पर संपूर्ण सत्य और यथार्थ यही है
कि सिक्के का एक पहलू तो हो ही नहीं सकता।
या फिर यह मान लीजिए
कि जीवन और सिक्के के दो पहलुओं का होना
अकाट्य अटल सत्य ही तो है।
