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prachi padoti

Classics

3  

prachi padoti

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वक़्त

वक़्त

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वक़्त जो अपनी रफ्तार से चल रहा है

एक दिन आ के ठहरा मेरे आँगन 

पूछ, मुझसे मेरी रजामंदी 


मैंने भी हाँ में हाँ भर दी

बिना कुछ जाने बिना कुछ कहे

दरवाज़े सब खुल रहे है दिल के घरो के

खििड़कीया सब खुल 

खुल रहे है ना जाने किितने 


अरमानो के

पर्दो से बेपर्दे हो रहे न जाने राज़ कई

उलझ रही हैं रििश्तों की डोरी कहीं 

बस ये जो वक़्त हैं

अपनी रफ्तार से चला जा रहा है


बिना किसी शिकवा 

शिकायत के 

इंसान इनसां की 

पहचान कर रहा 

कुछ अपनी 


तकलीफ कुछ उसके 

नाम कर रहा कोई 

अपनी किस्मत पे 

रो रहा तो कोई खुद से 


लड़ रहा 

बस ये वक़्त हैं 

अपनी रफ़्तार से 

चल रहा।


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