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prachi padoti

Classics

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prachi padoti

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मेरा बचपन

मेरा बचपन

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प्रिय डायरी,

आज मेरा देश आइसोलेट हो गया है वो भी पूरे 21 दिन के लिए ।.और मैं तुम्हारे साथ ऐसे मौके पे कैसे आइसोलेट हो सकती हूं ।.

सुनो मुझे तुमसे कुछ कहना है ।।किस्से पुराने पर अंदाज़ क्या कहना है।

आज मुझे इस फुरसत के पल तुम्हारे साथ बिताने है।.

हैं कुछ खट्टी बातें पर उनकी यादें मीठी करना है।

हाँ मुझे तुमसे कुछ कहना है।.

आज 1अरसे बाद शायद खिड़की के बाहर झाँका है।

आँगन में बच्चों को खेलते देखा है।

बस फिर क्या वक़्त मानो पीछे ही चल पड़ा।

माना उस रेत की ढेरी से रिश्ता पुराना है। मगर अब वो मुझे पास बुलाती नहीं। माना उस रेत की ढेरी से रिश्ता पुराना है मेरा।

मगर अब फिर से वो घरोंदे बनते नहीं।

कभी उस ढेरी पर बैठ सपने कई संजोये थे मेरे बचपन ने।

मगर अब उन सपनो में ताकिद नहीं।

माना आज वो बचपन वाली रूह कहीं छूट सी गई है।

पर मेरा जिस्म आज भी उसकी खुशबू से महक उठता है.

हाँ वो मेरा 1 बचपन था।

जिसका आकाश तो नीला था पर

सपनें उसके इंद्रधनुषी था।

वो भी 1 दौर था मेरे बचपन का

जब मछलियां मेरी हवाओं से बातें करती थी

औऱ पंछी मेरे पानी मे गोते लगाते थे

हाँ वो भी तो 1 दौर ही था

जब सपने मेरे बिस्तर पर नहीं खुले आसमानों के नीचे आते थे

तो कभी उस अमरूद की डालियों पर

जहाँ अक्सर मेरा झूला टांगता था बस

उस कल औऱ आज में फर्क इतना है

कल सपनों में भी मैं हवाओं से बातें करती थी औऱ नींद खुलने पर 1सुकून भरा दिलासा था

आज उन सपनों से भी डर लगता है

पर उस डर के बाद कोई दिलासा नही

कल तो खुला आसमान भी मेरा अपना लगता था

मानो ये सारे मेरे अपने ही तो हैं

पर अब तो उन पेड़ो की भी बोलियां लगती है

जहाँ मेरा झूला टांगता था

हैं याद है मुझे वो कुछ मुर्गियां

जो बिन बुलाये मेहमान की तरह या यूं कहो तो चोरों

की तरह आती थी

और मेरे आँगन की काली मिट्टी बेवजह खोद कर चली जाती थीं

पर अब तो जैसे वो भी घर की बिहाई बेटी हो गई है

जो सिर्फ ख़ास मौक़े पर ही घर आती है।

अगर वो भी न हुआ तो सिर्फ कढ़ाई पर दिखई देती है

किसी के जजमेंटल

का साइन होती है

हाँ वो मेरा बचपन था

जब कच्चे आमों के पीछे भारी

दोपहरी में भागा करते थे

पर अब वो दोपहरी भी चुभने लगी है

सुनो 1बात है कहना

क्या वापस नही मिल सकता

वो बचपन वाला गहना

जहाँ समझदारी जाती थी तेल लेने

औऱ शरारतें हुआ करती थी

पसंदीदा सब्जेक्ट

हाँ बहुत याद आता है बचपन

मेरा जहां हर चीज़ पर में

अपना नाम लिखती थी पर अब तो सिर्फ

1तख्त लिखा मिलता है

"यहाँ अपना नाम लिखना मना हैं"

हैं बहुत याद आता है बचपन और

याद आती है स्कूलों की छुट्टियां।


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