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Krishna Bansal

Abstract Classics Inspirational

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Krishna Bansal

Abstract Classics Inspirational

बुढ़ापा कैसा?

बुढ़ापा कैसा?

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लोग कहते हैं 

मेरी उम्र हो गई है।

 मैं बूढ़ा गई हूं 

शायद मेरी शक्ल 

देख कर कहते हैं। 


मैं कहती हूं 

बुढ़ापा कैसा ?

शौक से मैं खाना खाती हूं 

पहनना ओढ़ना करती हूँ

गाना सुन सकती हूं 

पिक्चर देख सकती हूं

माना दौड़ना मुश्किल है

चल फिर सकती हूँ 


शरीर के किसी अंग में 

दर्द भी नहीं होता। 

राजधानी एक्सप्रेस 

नहीं रही अब मैं, 

पेसेंजर अभी भी बहुत बढ़िया हूँ।


मैं कहती हूँ

बुढ़ापा कैसा ?

मैं पढ़ सकती हूं 

गुनगुना सकती हूं  

महसूस कर सकती हूं 


ठंडी ब्यार की छुअन 

फूलों की सुगन्धि

तपती दोपहरी की तपिश 

चांद की ठण्डक 

ले सकती हूं

झर झर बहते जल का आन्नद।


बुढ़ापा कैसा ?

बुढ़ापा किसे कहते हैं ?

बुढ़ापा होता है 

जब सारी आंतरिक शक्ति 

क्षीण हो जाए। 


इंद्रियां ठीक से न करें काम।

सन्तुलन बिगड़ना शुरू हो जाए

यानि बुढ़ापा शरीर का।

वायदा मेरा यह रहा 

मैं बुढ़ापे को नकारती रहूंगी।

 

बाल सफेद हो गए

रंग लेंगे 

दांत खराब हो गए 

दांतो के डॉक्टर है न  

मोतियाबिंद उतर आया 

ऑपरेशन हो जाएगा 

झुर्रियां पड़ गई 

बोटोक्स इसीलिए बना है।


फिर बुढ़ापा कैसा?


वैसे, शरीर का धर्म है बूढ़े होना

जिस दिन पैदा हुए थे 

उसी दिन लिखी गई थीं 

शरीर की 

पांच अवस्थाऐं

जन्म, बचपन, जवानी 

बुढ़ापा, मृत्यु।


राज़ साझा करना चाहती हूँ।

 

बूढ़ा तो होना ही है 

हर किसी को।

 

पर अगर आप संलग्न रहते हैं 

किसी रचनात्मक कार्य में।

आप सक्रिय हैं 

मानसिक रूप से। 

सोच है सकारात्मक।


धत्ता दे सकते हैं

बुढ़ापे को 

एक लम्बे अरसे तक।


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