हम सब कर्जदार हैं
हम सब कर्जदार हैं
हम सब कर्जदार हैं
प्रकृति के।
प्रकृति ने हमें जन्म दिया,
पलने बढ़ने के लिए
वायु, जल,अनाज,
सूर्य की तपिश
पेड़ पौधे
और न जाने क्या क्या दिया
सबसे ऊपर दी
सृजनहार, पालनहार के रुप में
एक मां।
वक्त आ गया है
प्रकृति के ऋण को उतारने का।
हम अपना कुछ भी
योगदान दिए बिना
कर्तव्य निभाए बिना
प्रकृति को दोहने का
कार्य ही करते रहते हैं
वक्त आ गया है
प्रकृति के ऋण को उतारने का।
नए पौधे लगाकर
जल संरक्षण कर
औद्योगिक अपशिष्ट का
सही तरीके से प्रबंधन कर
जैसे तैसे पर्यावरण को बचा कर
चारों ओर स्वच्छता रख कर
वक्त आ गया है
प्रकृति के ऋण को उतारने का।
खेती बाड़ी की
जैविक विधि अपना कर
कीटनाशक व उर्वरक को
बुद्धिमानी से बरत कर
ज़मीन को वैकल्पिक तरीकों से
उपजाऊ बना कर
वक्त आ गया है
प्रकृति के ऋण को उतारने का।
