आस ऐ कलम
आस ऐ कलम
आस ऐ कलम
आज तो हद कर दी प्यार की
लेकर रोशनी चिराग की
लगी आग वैराग सी
देखता रहता तो शाम होती
न देखूँ तो बदनाम होती
जला दी फिर शमा दिल में
सोचकर घुसना न पड़े बिल में
पाठ पढ़ती रही समरहिल में
यहाँ काम करोड़ों पड़े मील में
बैठकर सम्मुख उसके
देख न पाता
दूर से जान लिया
मुस्कान देख न रुका
याद मुकम्बल प्यार आया
सिर झुकाकर न राजयोग आया
साथ सहेली रही पहेली
करें इज़हार गर मिले अकेली
साथी बताया खुद-खुदा ने
छोड़ बड़ी बड़ी हवेली
आज तो हद कर दी प्यार की
लेकर रोशनी चिराग की।