आत्म दास्ताँ
आत्म दास्ताँ
लिख दूँ दास्ताँ सारी
अब मन उठ सा गया है
जिद्द खत्म हो रही है
पाने को तकदीर में कुछ नही है
बेमतलब सी साँस क्यों ली जाए
क़र्ज़ माफ़ी नही मिलेगी
फिर क्यों खुद -खुदा का रास्ता क्यों रोका जाए
अनजान कब तक बना फिरूँ
नही किया इश्क़ महोब्बत
कैसे ढूँढ कर लाऊँ प्यार
लिख दूँ दास्ताँ सारी
मन उठ सा गया है
बात करने नही आती हमे
मनाते कैसे रूठे को,कैसे जाने
लिख दूँ दास्ताँ सारी
मन उठ सा गया है।
अब यह अंतिम वाणी राजयोग
मन ऊब गया है
नही लिखूंगा एक भी नया शब्द
खत्म हो गए सारे लफ्ज़
जो कलम लिखते नही थकती
आज थक कर टूट चुकी है
उसने कोरे कागज पर चलना बन्द कर दिया है
सब कुछ पा लिया
धोखा, प्यार ,इश्क़, महोब्बत, नाम, इज्जत, धन दौलत
कुछ भी कमी नही, ओर सब की कमी रही।
जितना जीना है , उतना जी लिया
सुख दुख का दर्द, पानी पानी किया
आज तक जो लिखा -लिख दिया।
अंतिम इच्छा दास्ताँ ऐ राज लिख दिया
