STORYMIRROR

Yog Raj Sharma

Abstract

3.6  

Yog Raj Sharma

Abstract

एक पड़ाव

एक पड़ाव

1 min
77


यह देख, क्या समा आ गया

मुझे देख, क्या दम्मा छा गया

देखकर न देखा करूँ

सोच नया जमाना आ गया


हे रस्म ऐ अंजुम पीछा तेरा कर नही सकता

प्रेम मुकम्मल कैसे करूँ

तू नजर में आ मेरी

मरता मर्द जी सकूँ


सोच नई लेकर

पुतलियों में भरता रहा

तेरा हर लफ्ज़ हट का

मिटा कर भ्रम ,पीछे हटता रहा


अब क्या लगाऊँ भागी को भोग

प्रेम इवादत नाजुक रोग

मिट जाए सभी मन से तेरे

मिटता नही राजयोग


 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract