राज ऐ रण
राज ऐ रण
नही करूँ अंजुमे ऐ मुलाकात दूरी खुद बनाई है।
इतनी तपन दिल में कौन देखे,आँखें लाल उतर आई हैं।।
चीर देता है रण में तलवार से
ऐसा घात प्रतिहार है।
उस खुदा को देख रहे सिन्फ़ ऐ अंजुम
मशवरे की सेना बन रही दिन रात है।।
अपना जिसे मानूँ
छोड़ कर चला जाता है।
रोता राजयोग खुद से
एक वार नही यहाँ, पल में हजार वार हो जाता है।।
सुनो मन- मोहनी
हम दिल की सुनते हैं
तभी हर वार सहन लेते हैं।
हमारा एतवार बेकार नही जाता
कोई सह नही पाता इसलिए राज वाण नही चलाता है।।
बहुत जल्दी कर ली ईबादत समझने में
इतने समझदार भी ठीक सही।
फैसला अब सोच समझ कर होगा
पिछली गलती की यह सीख रही।
नही करूँ मुलाकात, दूरी खुद बनाई है।
इतनी तपन दिल में कौन देखे, आँखें लाल उतर आई हैं।।
