दर्पण
दर्पण
दर्पण तुम्हें कर दूँ दर्पण
पद तेरे भर दूँ पद से
कलम स्याही रखूं लाल
माँ हूँ मैं तेरा लाल
सिंदूर नहीं लाल ऐ लाल खून सुखाकर
पूजा पर करूँ तेरी अर्पण
हर पल साथ निभा रही तू
कर्ज मान कर चलूँ पथ पर
रण में जा आऊं रथ पर
हर रात भरूँ जयकारा तेरा
तू जगदंम्बे माँ शेरा
क्या न्योछावर करूँ
सब तेरा
क्या है जगत में मेरा
उलझन क्षण भर आती
पीड़ा दुख में नहीं भाती
जब सामने तू चामुंडा आती
जगत जननी रात्रि में आरती तेरी दुनिया गाती
दर्पण तुझे कर दूं दर्पण
सिंदूर नहीं राजयोग खून करूँ अर्पण