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Manu Sweta

Abstract

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Manu Sweta

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मेरा सफर

मेरा सफर

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बस यूँ ही,

कुछ दूर तक चलते रहे

हमअनजान मंजिल की ओर.....साथ थे,


हाथों में हाथ थे,

खुश थे,मगर....

खामोश थे

क्यों ?


कह नहीं सकते

लेकिन....चलने को मजबूर थे

और क्यों न हो 

यही तो नियति है बस..


चलते रहना,

चलते रहना तुम

ठहर गए शायद,

तुम्हारी मंजिलआ गयी  


पर.....मेरी मंज़िल

अभी दूर है

पहुँचना भी जरूर है

खेद है !


तुम साथ नहीं तो क्या ?

तुम्हारी बातें तो है

पुरानी यादें तो है

इसी में संतोष कर लूँगी

तुम्हारी यादें सहेज कर रख लूँगी


लेकिन ....ये बिल्कुल नहीं कि.....

मैं रुक जाऊँगी

मेरा सफरआज भी जारी है

और तब तक जारी रहेगा 

जब तक श्वेता की

एक भी सांस बाकी है।


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