ज़िन्दगी
ज़िन्दगी
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ज़िन्दगी भी अजीब रंग
दिखाती है....
जो हो नहीं सकता
उसके पास ले जाती है
क्यों ऐसे मोड़ पर
छोड़ कर चली गयी मुझको
कि मैं चाहकर भी...
कुछ चाह नहीं सकती
कुछ बातों पर अपना
बस नहीं चलता
वो तो यूं ही
हो जाया करती है
तेरी दुनिया के
रूप निराले देखे
हर मोड़ पर
चोट पहुचाने वाले देखे
कुछ हाथो से तो कुछ
ज़ुबाँ से चोट देते है,,
हर किसी का मुकद्दर
हो गया निर्धारित
लेकिन सब दांव
लगाने वाले जुआरी देखे
इस बार मेरी कोई
खता न थी श्वेता
फिर भी संग मेरे
लिए ही तैयार रखे है
क्या करे हम
कुछ समझ नहीं आता
ये तो सब ऊपर वाले
पर छोड़ रखा है।