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Dinesh Dubey

Abstract

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Dinesh Dubey

Abstract

मुर्दे को मुर्दा ना कहना

मुर्दे को मुर्दा ना कहना

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मुर्दे को मुर्दा ना कहना,

है उसमे बड़ी अकड़,

जिंदा जो बन बैठे मुर्दा,

पहले उन्हे जकड़।


जिंदा रहकर जो जले,

वह मानुष कैसे होय,

जल जल कर अपना,

देता सबकुछ खोय।


अपना पराया करते करते 

जो तोड़े है स्नेह,

अपनों से जो बैर करे,

वह दुनिया से कैसे तरे।


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