STORYMIRROR

अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा बाबा

Abstract Inspirational

3  

अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा बाबा

Abstract Inspirational

फिर भी नहीं ठंड की जीत।

फिर भी नहीं ठंड की जीत।

1 min
243


शीत लहर की धूम है,

कहां बादलों की धूप है।

बूढ़े बच्चे सब परेशान हैं,

ठण्डी हवाओं से मलाल है।

सूर्य रश्मियाँ आती सरपट,

घेरे बादलों की छांव उल्फत।

शाम ढलती आग जलती,

शीत लहर सुबह शाम चलती।

अंतस में सिहर जब उठती ठंड,

आम आदमी को ही करती तंग।

सर्द हवाओं के अवचेतन में,

मजदूर किसान खेतन में।

नंगे पांव बदन पर छीट,

फिर भी नहीं ठंड की जीत।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract